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मंगलवार, 17 सितंबर 2013

श्रद्धांजलि

145. श्रद्धांजलि

सुगिया संग भगवानक बेबहार नीक नै रहल अछि ।जुआनि चढ़िते जमीनदारक प्रकोपसँ जुआनि उतरि गेलनि ।इलाका भरिमे बदनाम भऽ गेली ।किओ वियाह करबाक लेल तैयार नै छल ।माए-बाप लेल भरिगर बोझ बनि गेल छली आ गामक लेल कुलटा, कुलछनी, राक्षसनी...जानि नै और कते उपमासँ सुशोभित छली ।थाकि हारि कऽ अपनासँ छोट जातिक दूत्ती बरसँ वियाहि लेलनि ।अपन सम्बन्धीसँ बारल सुगनी माँगि-चाँगि कऽ गुजारा करैत गामक बाहरे खोपड़ि बनेने छलीह ।समय बितैत गेलै ।समयक डाँग फेर लागलै आ बाँझिनक उपमा भेंटि गेलनि ।आइ अस्सी वर्षक बाद खोपड़िक बाहर हँकमैत-खोखसैत बैसल सुगनी अपन अन्त समयक बात सोचैत छलीह "हमरा तँ किओ अछिए नै ।हमरा पाँच काठी के देत? हमर श्राद्ध के करत ?" एहने सन प्रश्न देहमे बचल शक्तिकेँ गिलने जा रहल छल ।सोचिते छलथि की किओ पएर छुलकनि ।ओ उपर देखलनि तँ एकटा युवक ठाढ़ छल ।सुगनी अकबका गेली ।परिचयक बाद पता चलल जे ओ युवक सुगनीक छोट भाएक पोता अछि ।सुगनी हाथ-पएर समेटऽ लागली तँ ओ युवक बाजल "गै दादी, तूँ एना नै कर ।हमहूँ तँ तोरे खानदानक छियौ ।बाबा-परबाबा तोरा बारि देलकौ मुदा हम तँ अपनेबौ ।एँ गै आजुक जमानामे ककरो बारल नै, अपनाएल जाइ छै ।" एते कहि युवक सुगनीक बगलमे बैस रहल ।सुगनीक दुनू आँखिसँ दहो-बहो नोर बहऽ लागल ।ओकरा अपन चितापर पाँच काठी पड़ैत देखाए लागलै ।चितापर जिनगी भरिक दुख आ अपमान धू-धू कऽ जरि रहल छल ।सुगनीकेँ जीबिते सबसँ पैघ श्रद्धांजलि भेंटि गेल छलै ।

अमित मिश्र

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