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गुरुवार, 3 अक्तूबर 2013

कर वाधाकेँ चूर चूर

बाल कविता-104
कर वाधाकेँ चूर चूर

रोड़ा-खपटा काँट-कूशकेँ देख कतहु नै थम्हि जो
सत्त बाटपर चलैत-चलैत तूँ नीक बटोही बनि जो
जाहि बाटपर चलैत-चलैत एक पुरुख बनल महापुरुख
ओहि बाटक रज माँथ सटा कूदैत-फानैत तूँ चलि जो
सकदम भेने नै काज सफल हाथ-पएर चलाबऽ पड़तै
दू ठोप चुआ कऽ धाम सुधा तूँ जिनगी गमगम कऽ जो
तोरामे छौ शक्ति अपार छिड़िआएल मुदा छौ जहिं-तहिं
शक्ति संचित कऽ डेग बढ़ा लक्ष्य देख कऽ तन तनि जो
जँ नै भेटतै कतहु वाधा तँ जिनगी निरस, मस्ती कहाँ?
कर वाधाकेँ चूर-चूर तूँ जिनगीक अर्थ बुझैत जो

अमित मिश्र

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