153. सुइया भोंकि रहल
"हे...हे...सुनलियै यौ...जुलुम भऽ गेलै...छोपि देलकै...बाप रे बाप...रमचनराक घेंटि छोपि देलकै ..."
"एँ यौ कतऽ, के घेंटि काटि देलकै ?"
"सरबनमा बढ़मोतरमे मसोमात बला खेतक आरिपर रमचनराक घेंटि काटि देलकै ।" जंगलक आगि जकाँ कानोकान भरि गाममे ई घटना पसरि गेल ।लोकक हुजुम बढ़मोतर दिस दौड़ पड़ल ।एक्कै आरिमे रामचन्द्र आ सरबनक आरि छलै ।बाप रे बाप !बड विभत्स दृश्य छल ।रामचन्द्रक खेतमे रामचन्द्रक धर पड़ल छल आ सरबनक खेतमे जीउ आ आँखि निकालने सिर पड़ल छलै ।आरिपर पड़ल कटल गर्दनसँ शोणितक गंगा-यमुना बहैत छल ।बगलेमे खूनसँ नहाएल कोदारि पड़ल छलै ।किछु लोक सरबनकेँ कसि कऽ पड़ने छल ।ओ चिचिया रहल छल "एक्कै आरिक खेतमे एते जुलुम भेलै यै ! सार रमचन्द्रक खेतमे मोनक मोन धान आ हमरामे खाली खखरी...साला अपन खेतसँ माँटि कटबा कऽ खत्ता कऽ लेलकै ।हमर खेतक पानि ओकरा खेतमे जतै ! ले ने सारकेँ उठाइये देलियै ।हमर बापे बैमान छलै जे नीक खेत ओकरा देलकै ।ओकर खेतक हरियरी हमरा सुइया भोंकि रहल छल । आब लैत रहौ मोनक-मोन धान ।"
सब सोचि रहल छल जे अपन दोष देखने बिना लोकक अरारि एतेक पैघ घटना घटा सकै छै ।
अमित मिश्र
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