154. नवतुरिया
एक बेर फूल आ फूलक गाछमे बकझक भऽ गेलै ।फूल आन्दोलन ठाढ़ कऽ देलक "नै...आब जुलुम नै सहबौ ।आब हम नै मौलेबौ ।"
गाछ शान्त करैत बाजल "एना किए बाजै छें ।तोरा कोन दिक्कत होइ छौ ?तूँ तँ हमर अंग छें ।तोरा तँ प्रेमसँ मौलेबाक चाही ।"
"अरे वाह रे वाह !हम हिनक अंग छी! हमरे सुगंधक कारण लोक तोरा पूछै छौ आ तूँ हमरे मौलाइ लेल कहैत छें ।" फूल आक्रोशित होइत बाजल ।
गाछ ओकरा बुझबैत बाजल "देख दुनियाँ परिवर्तनक पर्याय छैक । जा धरि तूँ नै मौलेबें ता धरि नव फूलक जनम नै हेतै ।"
फूल क्रोधे थरथराए लागल "तैसँ हमरा कोनो मतलब नै ।नवतुरियाकेँ हम कोनो रोकने छियै, आबौ ने...मुदा हम रहबे करबै ।"
"एतेक जिद जुनि कर ।समाजमे देखै नै छहीं बुढ़बा-बुढ़ियाकेँ कतेक गंजन होइत छैक ।पुरनका सब सबटा अधिकार अपने लऽग राखऽ चाहै छै आ नवतुरिया अपना लऽग चाहै छें ।बूढ़-पुरानकेँ किछु बरदाश्त नै होइ छैक आ नवकाक खूनक गरमी लऽग हारि कऽ मारि खाइ छैक । ऐसँ बढ़ियाँ जे अपन इज्जत बचा कऽ नवतुरिया लेल स्थान खाली कऽ दी ।"
गाछक बात सूनि फूल सब बात समझि गेल आ दोसरे दिन मौला कऽ गाछसँ खसि पड़ल ।
अमित मिश्र
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