सेनूर छै अनमोल (भाग-7)
पट परिवर्तन (दोसर पट)
( मुरलीक घरक दृश्य ।राधा घेंट झुकौने, माँथपर हाथ देने चिन्ताग्रस्त मुद्रामे बैसल अछि ।लऽगमे मुरली पत्रिका पढ़ैत अछि ।)
मुरली- (पत्रिकासँ धियान हटा राधा दिस ताकैत ।) की भेल अहाँकेँ ? किए मुँह लटकेने छी ?जहियासँ सासुर एलौं हेँ अहाँक मुँह लटकले रहैत अछि ।एतेक सुन्दर रूप-रंग देने छथि दैवा, एकरा व्यर्थ किए कऽ रहल छी ?दैवोकेँ तामस चढ़ैत हेतनि ।कखनो काल मुस्कियाएलो करियौ ।
राधा- की करबै ? जिनगियेक नाम उदासी छैक ।जखन करेजक गहराइमे बड़का टा घाव भेल छै जकर टीससँ रहि-रहि कऽ देहक अंग-अंग कानैत रहैत अछि तखन कृत्रिम मुस्कुराहटसँ कोन फायदा ?
मुरली- अहाँक टीस कोनो अहींकेँ तँ नै कनबैत अछि, हमरो कनबैत अछि ।अहाँसँ बेसी दर्द हमरा होइत अछि ।अहाँ हमर अर्द्धांगनी छी ।आधा अंग छी ।देहक आधा भाग दर्दसँ कुहरैत रहतै आ आधा भाग हँसैत रहतै, ई कतौ सम्भव छै ? नै ने ।तखन लोककेँ अपना सक भरि हँसी-खुशीसँ रहबाक चाही ।
राधा- जँ अहाँकेँ हमर एतेक चिन्ता होइत तँ हमर दर्दक दवाइ किए ने आनैत छी ?
मुरली- एकर कारण तँ अहूँकेँ नीक जकाँ बूझल अछि ।ई बात सत्य अछि जे अहाँक नैहर बला सुख-सुविधा एतऽ सम्भव नै अछि, मुदा हम तँ प्रयास कैये रहल छी ?गाममे बिजली नै छै तेँ अहाँकेँ एसी, फ्रीज आ टी॰भी॰ बला सुविधा कोना देब ।हमर आमदनी एतेक बेसी नै अछि जे अहाँकेँ लेल शहरी वेवस्था कऽ देब ।
राधा- हँ...हँ...बुझलौं...बुझलौं ।अहाँ तँ अपन बचाब करबे करबै ने ! एँ यौ दुनियाँमे लोक जँ ठानि लै छै तँ कीसँ की कऽ दै छै आ अहाँकेँ सुनिते चोन्ह लागैत अछि ।हमर उदासी नै हरि सकै छी तँ कमसँ कम बाजैयोसँ परहेज करू ।
मुरली- (तमसाइत) परहेज, परहेज तँ केनाहिते छी ।आब कतेक करी ।सब बातमे तँ अहाँकेँ हमरे गलती देखाइत अछि ।कोनो बात कहब नै कि मुँह लटका लेब ।लोक जाहि सुख लेल वियाह करैत अछि से तँ कहियो देलौं नै, खाली झगड़ैत रहै छी ।जखन अहाँकेँ हम पसीन नै छलौं तँ हमरासँ वियाह किए केलौं ?
राधा- वियाह कोनो हम अपन मरजीसँ केलौं ।जँ हमर वश चलितय तँ अहाँकेँ वेदीयेपर सँ बैलगा दितौं ।हम तँ तखनो मजबूर छलौं आ एखनो मजबूर छी ।
मुरली- मजबूर, झुठौंका मजबूरी अछि ।एखन तँ अहाँक वश चलिते अछि ।एखन कोनो हमरा अपन लऽगमे रखने छी, एखनो तँ हम अहाँसँ दूरे छी ।दूर रहै छी ।दूर सुतै छी ।दूरे हँसै छी ।अहाँसँ हमरा कोन सुख भेटल जे हम अहाँकेँ सुख देब ।
राधा- नै ने दिअ ।अहाँसँ सुखक भीख माँगिते के अछि ? अहाँ किछु नै दिअ बस हमरा छुआछन दऽ दिअ । हमरा तलाक दऽ दिअ ।
मुरली- (नरम होइत) हे जे भेल से भेल, आब एहन बात फेर नै बाजब ।वियाह मने छुट्टमछुट्टा नै होइ छै ।वियाह मने तलाक नै होइ छै ।वियाह मने प्रेम होइ छै ।प्रार्थना करैत छी अहाँसँ, एहन बात नै बाजल करू ।
राधा- तखन हमर दिमाग नै खाउ ।झुट्ठेकेँ केँ-केँ केँ-केँ करैत रहै छी ।चुप रहू ।
(मुरली चुप भऽ जाइत अछि ।राधा एकटा पत्रिका लऽ पढ़ऽ लागैत अछि ।राजाक प्रवेश होइत अछि ।)
राजा- (दुनू हाथ जोड़ैत ।) प्राणाम भौजी...की हाल-समाचार अछि ? नीके ने?
राधा- हँ हँ, नीक अछि ।
राजा- घर-दुआरिमे कने कम जोरसँ बाजल करू ।बाहर धरि ओनाहिते अवाज जाइ छलय ।लोक-वेद सुनतै तँ की सोचतै ?
मुरली- की सोचतै आ किए सोचतै ? आजुक जमानामे पति-पत्नीकेँ प्रेमो करैक लेल घरक कोनटामे सन्हियाए पड़तै की ?
राजा- (व्यंग करैत) नै नै, सन्हियाए किए पड़तै ? आजुक जमानमे छतपर चढ़ि कऽ चिचिया-चिचिया कऽ प्रेम करऽ पड़तै ।(जोरसँ बाजैत) यौ गौआँ-घरुआ, सुनै जाउ, हम प्रेम करैत छी ।हम कनियाँकेँ बाँहिमे पकड़ैत छी ।हम चुम्मा लैत छी... ।हूँह, बड एलखिन प्रेम करै बला ।हमहूँ वियाहल छी मीता ।प्रेम कोना होइत छै से हमरो बुझल अछि ।मुदा एखुनका अवाजमे तँ प्रेम जकाँ किछु नै बुझाइत छलौ ।
मुरली- निकालि ले सबटा जलन एतै ।तूँ अपन करिझुमरी कनियाँ संगे कोना प्रेम करैत छहीं से कोनो हमरा नै बुझल छै ।हम तँ सत्यानाश जानैत छीयै ।तोहर प्रेम तँ लाइत-मुक्का आ बेलनेसँ शुरू होइत छौ ।
राजा- जेना कि हिनका घरमे ई सब नै होइत छन्हि ।पहिने अपन कमजोरी देख, बादमे हमरा कहिहें ।
क्रमश:
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