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रविवार, 30 नवंबर 2014

बाल कविता- मन होइए

बाल कविता-139
मन होइए

मन होइए सुग्गा बनि कऽ हम
मुक्त गगनमे उड़ैत रही
ढेर तरेगण झोड़ामे भरि
आँगन जगमग करैत रही

पाछू घुरि कऽ नै देखी आ
सदिखन आगू बढ़ैत रही
एक ठाढ़िसँ दोसर ठाढ़िक
बीच सम्वन्ध गढ़ैत रही

सब टेंशनसँ मुक्त भऽ जगमे
सबकेँ हँसबैत हँसैत रही
भूख लागय तँ कर्मक फलकेँ
ठोर सटा कऽ चुसैत रही

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