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शनिवार, 25 अप्रैल 2015

हमर जिनगीक रीत बड मारूक छै प्रीत


हमर लिखल गीत अहाँ सुनबै जँ मीत, तऽ अहूँक नैना बहि जाएत यौ
हमर जिनगीक रीत बड़ मारूक छै प्रीत, अहूँ सुनबै तँ हिया दहि जाएत यौ

हमर भागपर कानैए मेघ सघन
चान-तारा नुकाइए ने चाहय मिलन
हमर जिनगीक दिन बनल झंझाक राति, अहूँके सॅच बीच्चेमे रहि जाएत यौ

फूल हिया केर खिलल जे आबिते वसन्त
चैत सन प्रियतम केलक भ्रमर कर अंत
हमर जिनगीक मोसममे ग्रीष्मे छै मीत, अहूँके तन एहिमे झड़कि जाएत यौ

हमर बाजब छै बिरहिनके गीत बनल
ने प्रीत छै ने मीत छी अ-मीत बनल
हिया आँगनके भीत ढहि गेलैए

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