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शुक्रवार, 29 अप्रैल 2016

हिया अजबारि रखने छी

गजल

अहींकेँ लेल हे प्रियतम हिया अजबारि रखने छी
अहाँकेँ देल सब टा यादिकेँ सम्हारि रखने छी

चलू चलि जाइ दुनियाँ छोड़ि हम निर्जन सघन वनमे
रहब हम आ अहाँ केवल कथा विचारि रखने छी

कथी छै मोल ई देहक कतहुँ नै देहकेँ मोजर
अनेरे रूपकेँ प्रियतम सजा संवारि रखने छी

उठै छै मोनमे पीड़ा जखन दै मीत सब धोखा
हँसय नै लोक दोस्तीपर, मनहिमे गाड़ि रखने छी

कहाँ छै जोर ई मनपर पथिक ई मस्त मौला छै
भटकि नै जाइ बाटसँ 'अमित' तेँ पुचकारि रखने छी

१२२२-१२२२-१२२२-१२२२

अमित मिश्र

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