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बुधवार, 4 मई 2016

चलती

206.
चलती

"और सब तँ ठीक छै बीसो बाबू, मुदा ई कहू जे टाका कतेक खर्च करबै !" रामकरण बाबूक बात सुनि बीसो बाबूक ध्यान भंग भेल ।एकटा पैघ निसाँस छोड़ैत कहलनि-"हमर हालत त' अहाँसँ नुकाएल नहिये अछि ।कहुना यज्ञ पार लगा दियौ भाइ "
सुनितहिं रामकरण बाबूक मुँह तीत भ' गेलनि ओ कने खरूछाएल स्वरमे कहलनि-"अहूँ गजब करै छी भाइ, बिना दक्षिणाक कोनो यज्ञ सफल भेलैए आइ धरि, जे ई हेतै !"
बीसो बाबूक मोन घबड़ा गेलनि ।ओ निहोरा करैत कहलनि-"एना नै करियौ भाइ ।बड्ड आश लगा क' हम एलौंए ।हमर बेटी बड संस्कारी अछि ।एम.ए. धरि फर्स्ट क्लासक डिग्री छै ओकरा ।सुन्दरताक बड़ाइ हम की करी, ई त' जगजाहिर छै ।ओकरा अपन शरण लगबियौ भाइ |"
"दुर जाउ, अहाँ त' नेना जकाँ कान'-कलप' लागलौं ।यौ डिग्री, संस्कार आ रूपकेँ घोरि-घोरि क' नै ने पीतै हमर बेटा ? आइ-काल्हि सब एम.ए. पास करै छै ।एकर कोनो मोल नै छै आब ।आइ-काल्हि टाकाक चलती अछि ।जँ डाँरमे पाइ अछि त' बैसू, नै त' जाउ दोसर दुआरिपर ।" एते कहि रामकरण आँगन चलि गेलाह ।

अमित मिश्र

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