212. नाइट ड्यूटी
गर्मी बहुत बेसी छलै आ तेँ एसियोमे नींद छुमंतर भ' गेल छलै ।रातिक 12 बाजि रहल छल ।लॉनमे टहलैत देखलियै जे सामने बला मकानसँ एकटा युवती बाहर निकललै ।कद-काठी देख आंदाज लागल जे ई शर्माक बेटी छै ।बड नीक पान बनबैत छै शर्मा ।एत्तै गलीक शुरूआतेमे एकटा कटघारा बैसेने छै ।ओहि दोकानसँ घरक किराया आ पाँच प्राणीक भोजन-साजन कहुना क' चला लै छै ।बड मिलनसार छै शर्मा आ तेँ हमरासँ खूब मेल बैसै छै ।एसगर जाइत देख कने आश्चर्य भेल मुदा फेर सोचलौं जे ट्रेन-त्रेन पकड़ै लेल जाइत हेतै ।हमरा ऐ सँ की !दू-दिन बाद फेर निन्न नै भेल आ लॉनसँ शर्माक बेटीकेँ फेर देखलियै ।मोन कने आशंकित भेल ।आब त' हम जबरदस्तियो जागि क' ओकरापर नजर राख' लागलियै ।ओ सब दिन नियत समयपर बनि-ठनि क' जाइ छलै ।बगलमे रेलवेक पुरना क्वार्टर छलै आ हवाहवाइमे सुनने रहियै जे ओत' गर्म माँउस किरायापर भेटै छै ।मोनमे घनेरो प्रश्न उठि गेल ।शर्मा आ ओकर बेटी हमर नजरिमे खसि रहल छल मुदा असलियत जनबाक लेल हमर सी.आइ.डी मोन कछमछा रहल छल ।अगिला दिन ओकर पछोर ध' लेलियै ।रेलवे क्वार्टर पार भ' गेल ।ओकरा रोकि पुछबाक मोन होइ छल ,"गै छौड़ी एते राति क' कत' जाइ छहीं ?"
मुदा मंत्रमुग्ध भेल ओकरे पाछू भम चलल जा रहल छलियै ।ओ एकटा बड़का बिल्डिंग लग किछु पल ठार भेल ।अगल-बगल देख बिल्डिंगमे घुसि गेल ।ओकरे पाछू हमहूँ घुसि गेलौं ।बोर्डपर नाम देखलियै एयरटेल कस्टमर केयर ।जा किछु सोचितौं गार्ड हमरा रोकि लेलक ।हम भीतर जाइ लेल जोर लगाब' लागलौं ।जा धरि हमर चेतना घुरल ता धरि हो-हल्ला भ' गेलै ।आवाज सुनि लोक जुटि गेल ।हमरा देख शर्माक बेटीक कंठ सुखि गेलै ।ओ निहोरा कर' लागल "अंकल, हमर पापाकें किछु नै कहबै ।हम सबसँ नुका क' एत' पार्ट टाइम जॉब करैत छी ।घरक हालत हमरा नै देखल गेल ।गरीबीक जीवन बड दुखदाइ होइ छै ।प्लीज अंकल पापाकेँ नै कहबै ।"
हम शंकाक चलते लाजे धरतीमे धसल जा रहल छलहुँ आ ओ रसे रसे ड्यूटी निभेबाक लेल सीढ़ी चढ़ल जा रहल छलै ।
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