अझुका रचना- बाल कविता
278. बदमास बड घड़ी छै
राति रहै कि दिन रहै
एकरा त' हड़बड़ी छै
बदमास बड घड़ी छै
सूरज उगैसँ पहिने
टन टन क' ई बाजै
सूत' ने दैए हमरा
अधनीनमे जगाबै
दुश्मन ई पैघ हमर
तामस चढ़ल बड़ी छै
बदमास बड घड़ी छै
मंजन करै छी जा धरि
स्कूल टाइम आबै
टाँगल देबालपर ई
मुस्की गजबकेँ मारै
बान्हल जँ हाथमे त'
लागै ई हथकड़ी छै
बदमास बड घड़ी छै
अपना इशारापर त'
दुनियाँ केँ ई नचाबै
केहनो चतुर वा पंडित
एकरासँ बचि ने पाबै
चिन्हू ने एकरा एखन
ई समयकेँ छड़ी छै
बदमास बड घड़ी छै
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