अझुका रचना- बाल कविता
295. चिड़ियाँक पाठ
सूरज उगैसँ पहिने चिड़ियाँ जागि उठै छै
सूरज डुबला बादे चिड़ियाँ फेरसँ सुतै छै
सुन बौआ ई चिड़ियाँ पाठ एक सिखबै छै
बैस क' रहब नीक बात नै सबकेँ बतबै छै
ख'र-पातकेँ चुनि क' घर अपन बनबै छै
भोरे-भोरे चीं चीं चूँ चूँ क' सबकेँ जगबै छै
अन्हरसँ नै डर करै दिन गाछेपर बितबै छै
वाधासँ डटि क' लड़ब ओ सबकेँ सिखबै छै
खोलि पाँखिकेँ मुक्त भ' अकासमे उड़ै छै
एक दोसरसँ एको बेर कहियो नै लड़ै छै
एक गाछपर एक सौ चिड़ियाँ बास करै छै
मित्र भ' एक ठाँ रहब ओ सबकेँ सिखबै छै
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