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शनिवार, 28 अप्रैल 2018

गजल

गजल

रावणक मुत्ती सँ लुत्ती नै मिझा सकैए
कंठ जेना ओस चाटिक' नै भिजा सकैए

आंत जुन्ना जखन बनि गेलै भुखे पियासे
छोट सरकारी मदति भुख नै भगा सकैए

गेल गामक गाम जड़ि सुड्डाह भेल कोठी
ठोर मुस्की दैत हाथो नै उठा सकैए

पाइ के छाहरि बिछौना पर जँ सुतल नेता
दर्द लोकक ओकरा कोना जगा सकैए

आब महगाई ल' रहलै आइ जीब कोना
"अमित" कागज नै गजल कोना लिखा सकैए

     2122-2122-212-122
     
         अमित मिश्र

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