गजल
रावणक मुत्ती सँ लुत्ती नै मिझा सकैए
कंठ जेना ओस चाटिक' नै भिजा सकैए
आंत जुन्ना जखन बनि गेलै भुखे पियासे
छोट सरकारी मदति भुख नै भगा सकैए
गेल गामक गाम जड़ि सुड्डाह भेल कोठी
ठोर मुस्की दैत हाथो नै उठा सकैए
पाइ के छाहरि बिछौना पर जँ सुतल नेता
दर्द लोकक ओकरा कोना जगा सकैए
आब महगाई ल' रहलै आइ जीब कोना
"अमित" कागज नै गजल कोना लिखा सकैए
2122-2122-212-122
अमित मिश्र
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