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रविवार, 21 अप्रैल 2013

दलाल

विहनि कथा- दलाल

जिला मुख्यालयक बाहर एकटा घौनगर गाछक छाहरिमे दू टा अधवयसु बक-झक (गपक
माध्यमसँ झगड़ा) कऽ रहल छल।एकटा दलाल छल आ दोसर आम आदमी ।आम आदमी चमकैत
बाजल," हमरा अहाँ मुर्खाधिराज बूझि लेलौं की ?अपन ठेकान नै आ हमरा कानून
पढ़बऽ आबि गेल ।

एते सूनि दलालो जोशमे आबि गेल आ काँख तऽर दाबल कागतक बण्डल पटकि आँखि
देखबैत बाजल," तँ की हम भिखमंगा बुझाइत छी ? अपन स्वार्थसँ अहाँ आयल छी
।ई हमर कर्मस्थल अछि तें नै तँ सब गरमी झाड़ि दितौं ।

आम आदमीकें तामस चढ़ले रहै आब और बढ़ि गेलै ।थरथराइत देह आ तोतराइत
आवाजमे फुँफकारलक,"सा. . ."गारिसँ सुशोभित करैत," कतबो सूट-बूट लगा ले
रहबें तऽ दलाले ।जनता आ पदाधिकारी दुनूकें ठकै बला दलाल ।तोरा तँ जहलमे
जाएबाक चाही ।

दलाल कने कनन मुँह केने बाजल,"हँ, हम दलाल छी मुदाभीतर बैसल पदाधिकारीसँ
नीक छी ओ तँ बिनु मेहनत केने टाका लऽ कऽ कुर्सी आ इज्जत बेच दै छै मुदा
हम मेहनत केलाक बाद टाका लै छी आ किछु नै बेचै छी ।लोककें
चोर-डकैत-घुसखोर नीक लागै छै मुदा कर्मठ-इमानदार नै ।"

आम आदमी चुप भऽ गेल आ एकटा पनसैया आ कागत दलालक हाथमे दऽ देलक ।

अमित मिश्र

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