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मंगलवार, 30 अप्रैल 2013

जान बचल तँ लाख उपाइ

बाल कविता-34
जान बचल तँ लाख उपाइ

मुसरी रानी करय बड मनमानी
रूसि कऽ भागि केलक नदानी
भागैत-भागैत आएल माँझ बजार
पैदल लोक लाख, गाड़ी हजार
एहि दोग, ओहि दोग भागल कहुना
लतमर्दन होइसँ बाँचल कहुना
तखने लागलै ककरो पएरक मारि
ट्रक तऽर जा सखल टाँग पसारि
घर्र-घर्र करैत ट्रक आगू बढ़ल
टायर तऽर मुसरीक नाङगरि पड़ल
दर्दक लहरि नोर बनि बहि गेल
घर दिश भागल नदानी ढहि गेल
घुरि कऽ बुद्धू घर आएल आइ
जान बचल तँ लाख उपाइ (उपाय)

अमित मिश्र

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