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मंगलवार, 30 अप्रैल 2013

बुझनुक बौआ

बाल कविता-35
बुझनुक बौआ

बँसबिट्टीमे आगि लागलै
सब बाँस, बबूर जड़ि गेलै
थारी पीटऽ आ फूल लाबह
सिरकट्टा,पिशाच आबि गेलै
अगत-भगत सब मानरि पीटै
नै मिझेलै मुदा बढ़िते गेलै
बुझनुक बौआ दौड़ैत एलै
एक्के बेरमे बात बूझि गेलै
पानि पटाबह, बालु फेकह
मिथेन-आक्सीजनक संगम भेलै

अमित मिश्र

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