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रविवार, 26 मई 2013

हँसी

विहनि कथा-32
हँसी

-कतऽ गेलियै यै ? किछु बाजू तँ ।
-दुर . . .हमर बाँहि छोरू ।अहाँसँ बात नै करब हम ।
-हे हे एना जुनि करू ।अहाँ बतिआएब नै तँ हमर प्राणे चलि जाएत ।
-जाए दिऔ ।बढ़ियें हेतै ।
-आखिर हमरापर एतेक तामस कोन बातक अछि ?
-सभक पति अपन पत्निकें सिनेमा-सर्कस घुमाबै छै आ अहाँ दिन-राति दर्शनो नै दैत छी ।काजो करैक एकटा सीमा होइ छै ।
-अच्छे, एकर तामस छै ।कने लऽग आउ . . .हम पाइ कामाइ छी जाहिसँ नून-हरदि चलैत रहए आ अहाँ चिन्ता मुक्त भऽ सदिखन हँसैत रहू ।असलमे अहाँक हँसी किनबाक लेल घरसँ बाहर रहै छी ।

अमित मिश्र

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