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रविवार, 26 मई 2013

जखन होइ भोर

बाल कविता(गीत)-64
जखन होइ भोर

रे कागा जुनि कर एना शोर रौ
नव दिवसक जखन होइ भोर रौ

सबसँ पहिने जो दतमनि कऽ आ
खेत-पथारक जो दर्शन कऽ आ
शीतल पानिसँ मोन भरि नहा आ
माए देथुन तखन सोन्ह खोआ
जुनि बिसरें लगनाइ सबकें गोर रौ
नव दिवसक जखन होइ भोर रौ

मीठ बाज जुनि कर एते हल्ला
माँसु छोड़, फल-फूल भेटतौ ढल्ला
जुनि बनल रहें तू बेलल्ला
गाम-घरमे नै किओ तेहल्ला
पोति पौडर तूँ चाम कर गोर रौ
नव दिवसक जखन होइ भोर रौ

हमहूँ जेबै इस्कूल चल संगे
पाठशाला अनमन ज्ञानक गंगे
कात बैसिहें, जुनि करिहें तंग
पैघ लोक बनहें सीख ढंग
भोरे करिहें अ आ पढ़ि शोर रौ
नव दिवसक जखन होइ भोर रौ

अमित मिश्र

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