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सोमवार, 24 जून 2013

बाल कविता - बल्ले-बल्ले

बाल कविता-77
बल्ले-बल्ले

घरमे रहै जँ बौका बनरा
खाली करैए हल्ले यौ
देखू, होइते घरसँ बहरा
सदिखन भाँजै बल्ले यौ
कखनो चौका कखनो छक्का रन बनबै छै ढल्ले यौ
आउट करै छै जखने ककरो करै बल्ले-बल्ले यौ
छै खेलाड़ी बहुते बड़का कप जीतै छै पल्ले यौ
खेलैमे छै एते व्यस्त जे पोथी भेल बेलल्ले यौ
आखर चिन्हऽ नै आबै कोना बनतै शब्दक दस तल्ले यौ?
परीक्षाक समय जे एलै छुटलै प्रश्न धड़ल्ले यौ
रिजल्ट एलै तँ फेल फेलै नै आब अलगै कल्ले यौ
छँटा गेलै क्रिकेट बोर्डसँ छिनेलै हाथसँ बल्ले यौ
पढ़ैमे जे धियान नै देलकै खेलमे नै दऽ सकतै ढल्ले यौ
सब लेल समय बनल छै बौआ समयपर धरू बल्ले यौ
उचित समयपर पोथी पकड़ू जिनगी हएत बल्ले-बल्ले यौ

अमित मिश्र

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