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मंगलवार, 7 अक्तूबर 2014

गजल-चलती अपन छै

गजल-2.34

उपर अकास नीचा धरती अपन छै
हिम्मत छै तँ सब ठाँ चलती अपन छै

अपन लहाश अपनहि कन्हा उठाबी
जीवनमे करल किछु गलती अपन छै

सब चलि रहल पाछू जयकार करिते
शाइत सबसँ बड़का बढ़ती अपन छै

भागि रहल धुआँ बनि जग पाइ पाछू
एकर हाथमे ई जगती अपन छै

पीबि कऽ गप "अमित" जिनगी नै कटै छै
किछु करमो कऽ लिअ ई विनती अपन छै

2112-1222-2122

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