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सोमवार, 6 अक्तूबर 2014

गजल- तनखा दिऔ

गजल-2.31
सुक्खल अंतरीकेँ आब समझा दिऔ
भूखल शेरकेँ नै खूब तमसा दिऔ

लोकक बोलमे नै भाव बढ़ियाँ बचल
बिख-ठोरपर चिप्पी आब सटबा दिऔ

उल्टा धार सुल्टा बूझि सदिखन बहय
ई अछि गलत से जग भरिसँ कहबा दिऔ

मँहगाइक तियारिक बीच जिनगी फँसल
यौ जनताक सेवक आब तनखा दिऔ

ने देवी बचल ने ओ कराहे बचल
टूटल तार नेहक आब जरबा दिऔ

2221-2221-2212

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