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रविवार, 16 नवंबर 2014

गजल-किछु नव बात हो

गजल-2.50

हम रही अहाँ रही आर किछु नव बात हो
हम कही अहाँ सुनी आर किछु नब बात हो

जे कहब कहू मुदा तौल लिअ निज बोलकेँ
जे कहब, कहब सही आर किछु नव बात हो

भेद-भाव आइ तजि ठाढ़ एकहिँ मंचपर
प्रीतकेँ बहै नदी आर किछु नव बात हो

सफ हो सभक हिया साफ हो छवि लोककेँ
फड़य गाछ जनु कली आर किछु नव बात हो

बात बातपर हँसय सब हँसय धरती सगर
हो दरद सगर कमी आर किछु नव बात हो

2121-21-2212-2212

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