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शनिवार, 27 दिसंबर 2014

बड़ा अगत्ती बड़का लुत्ती


बाल कविता-150
बड़ा अगत्ती बड़का लुत्ती

भोरे भोर उगै छै सूरज, डुबै छै जा कऽ साँझमे
साँझ-भोर तँ ठंढे रहै, गरम रहै छै माँझमे

भोरे पूरब साँझे पश्चिम आ दुपहरमे माँथपर
चारू दिसा घुमै छै ओहिना जेना हो बैसल जाँतपर

कखनो उगलै आगि बहुते, कखनो बरफ पहाड़पर
कखनो सुटकै मेघ तर आ कखनो निकलै ताड़पर

भीजल कपड़ा-लत्ता तकरो गाड़ि-गाड़ि कऽ पीबै छै
पोखरि-झाँखरि पीब-पीब कऽ नदियोकेँ सुखाबै छै

बड़ा अगत्ती बड़का लुत्ती, बहुत दूरपर रहै छै
सूरज दादा सूरज दादा बौआ-बुदरूक कहै छै

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