बाल कविता-150
बड़ा अगत्ती बड़का लुत्ती
भोरे भोर उगै छै सूरज, डुबै छै जा कऽ साँझमे
साँझ-भोर तँ ठंढे रहै, गरम रहै छै माँझमे
भोरे पूरब साँझे पश्चिम आ दुपहरमे माँथपर
चारू दिसा घुमै छै ओहिना जेना हो बैसल जाँतपर
कखनो उगलै आगि बहुते, कखनो बरफ पहाड़पर
कखनो सुटकै मेघ तर आ कखनो निकलै ताड़पर
भीजल कपड़ा-लत्ता तकरो गाड़ि-गाड़ि कऽ पीबै छै
पोखरि-झाँखरि पीब-पीब कऽ नदियोकेँ सुखाबै छै
बड़ा अगत्ती बड़का लुत्ती, बहुत दूरपर रहै छै
सूरज दादा सूरज दादा बौआ-बुदरूक कहै छै
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