बाल कविता-158
छुटकू बाबू
खूब करै छै घिच्चम-तिर्री
फाटलै पन्ना चिर्री-चिर्री
के आनलकै एकरा आइ
छुटकू बाबू तिख मिरचाइ
खूब उठल छै उर्री-बिर्री
पोथीपर फेकलकै पूरी
सौंसे खीर खसेने जाइ
छुटकू बाबू तिख मिरचाइ
चुप्पे आबि कन्हापर बैसी
बहुत जोरसँ केश घिचै छी
खूब हँसै छी नोर बहाइ
छुटकू बाबू तिख मिरचाइ
सूतै बेर सुतऽ नै दै छी
पढ़ै बेर पढऽ नै दै छी
तंग करी उत्पात मचाइ
छुटकू बाबू तिख मिरचाइ
छुटकू बाबू नन्हकू बाबू
पढ़ै बेर अहाँ नै आबू
तंग-तंग कऽ देलौं आइ
छुटकू बाबू तिख मिरचाइ
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