बाल कविता-7
यदि पेड़ के चक्के होते
यदि पेड़ के चक्के होते
मैं भी शहर से हो आता
चाट समौसा इडली डोसा
किसी होटल से खा आता
सुबह सुबह डाली पर चढ़
स्कुल तक मैं पहुँच जाता
छुट्टी होती शाम को तो
घर को वापस आ जाता
दादा जी को पेंशन लेने
जब भी बैंक जाना होता
दादी डॉक्टर के पास जाती
सब को घुमा के ले आता
सचमुच कितना अच्छा होता
यदि पेड़ मे चक्का होता
इंजन के धुआँ से तब तो
जग को राहत मिल जाता
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