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शनिवार, 12 नवंबर 2016

एक कटोरी दूध

बाल कविता-248
एक कटोरी दूध

एक कटोरी दूधमे चिन्नी छै दू मुट्ठी
चारि दाना भात द' बनल जनमघुट्टी

गुरू शुक्र शानि वा रवि सोम  बुध छै
घुट घुट पीब रहल देखू बौआ दूध छै

भोर छै साँझ छै चाहे दिन राति छै
दूधक कटोरी ल' आएल चान शाइत छै

चाह नै पान नै मुदा टॉफी भरपूर छै
बौआ लए गुड़क त' पुआ जरूर छै

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