बाल कविता-250
ज्ञाने टा के भीख लेबै
अ आ इ ई क का कि की लिख लेबै
यौ बाबू आब सब किछु पढ़ब सिख लेबै
चोरि-डकैती झूठ-फसक्कर, नै लेबै
जँ लेबै त' ज्ञाने टा के भीख लेबै
कतबो कहतै कियो हमरा छुट्टी ल' ले
उटका-गुटका पान-सुपारी मुट्ठी ध' ले
ओहन दोस्तसँ दोस्ती झट द' झीक लेबै
जँ लेबै त' ज्ञाने टा के भीख लेबै
कतबो कहतै मोनमे अपन धुर्तै ध' ले
ठक-ठकैती क' क' सब किछु अपन क' ले
देतै कतबो लोभ, नै लाख-लिख लेबै
जँ लेबै त' ज्ञाने टा के भीख लेबै
बुझि गेलौं आब ज्ञानेसँ बुधियार बनै
नीक कर्मकेँ केनहिं सब चिन्हार बनै
आलसक अमृत नै, मेहनतिक बिख लेबै
जँ लेबै त' ज्ञाने टा के भीख लेबै
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (29-01-2017) को "लोग लावारिस हो रहे हैं" (चर्चा अंक-2586) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'