बाल कविता-260
रेलगाड़ी
पाछू डिब्बा आगू इंजन
चढ़िते होइ छै मनोरंजन
छौड़ै धुआँ मारै सीटी
टिकट देखै करिया टीटी
चाना-भाजा खोबिया लाइ
और बदाम खूब बिकाइ
दरभंगासँ दिल्ली धरि
सबकेँ घुमबै दुनियाँ भरि
छुक छुक चलै रेलगाड़ी
आगू चालक पाछू सबार
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (25-04-2017) को
जवाब देंहटाएं"जाने कहाँ गये वो दिन" (चर्चा अंक-2623)
पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
रेल वैसे भी बच्चों की उत्सुकता का विषय है ... अच्छी बाल रचन है ...
जवाब देंहटाएं