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रविवार, 3 जून 2018

लालिमा

सुरूजक लालिमा पसरि गेल छै
पुरबैया आकासमे
जिनगीक लाली तकि रहल छी
बैसल हम प्रवासमे

जीयब एक कला थिकै
सब नै जीब सकैए
मारि गारि अपमान सहि सब
नै साँसक घूँट पीबैए

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पूनम चान मलिछाह लगैए
मन हो जेना उदास
कोनो राहु फेर घोंटलकै
प्रेमक अनूप प्रकाश

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ओहि मनुखक भविष्य की हेतै
की हेतै ओकर अतीत
जकरा लग कहियो नै पहुँचल
साहित्य आ संगीत

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हम आखर संग खेल करै छी
आखरमे जीबै छी
मिठगर हो वा माहुर सन हो
आखर घोरि पिबै छी

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हम साहित्य सृजक छी, हमरा
एना नै दुत्कारि दिअ
अहींक भला लेल साँच लिखै छी
हे जनता स्वीकारि लिअ

उमर दुगुन्ना होइ छै जखने
जनमै घरमे पूत
हँसी खुशी केर मोटरी द क'
पठबथि इश्वर दूत

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