बाल कविता- 5.35
माँछसँ बतियेबै
मेला देखअ मम्मी संगे
गंगा कातमे जेबै हम
गंगा जीक कनकन पानि
चुभकि-चुभकि नेहेबै हम
चढ़ि नाहपर मम्मी संगे
बीच धार धरि जेबै हम
कछुआ संगे खेल खेलेबै
माछसँ बड बतियेबै हम
भरि दिन खूबे मस्ती करबै
साँझे घर घुरि एबै हम
©अमित मिश्र
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