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सोमवार, 6 मई 2013

मोबाइलक जादू

बाल कविता-44
मोबाइलक जादू

ट्रिन ट्रिन ट्रिन ट्रिन घण्टी बाजल
भुक भुक भुक भुक बाँल बरल
थर थर काँपैत जँहि-तँहि घुसकल
घर-बाहर खूब अनघोल मचल

कान सटा जे हैलो कहलौं
बाबूसँ खूब बात बतियेलौं
नानी नानाकें फोटो देखलौं
गीत, फिलिम देख खेला खेललौं

भेटल दुलार काकी -काकासँ
जे बैसल सात समुद्र पारमे
मोबाइल भरल कोनो जादूसँ
तें शामिल भऽ गेल भजारमे

अमित मिश्र

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