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मंगलवार, 7 मई 2013

जुर्वाना

विहनि कथा-18
जुर्वाना

एक बेर एकटा चोर अकबरक शाही कलमसँ किछु स्वादिष्ट आम तोड़ि लेलकै ।दोबारा, तेबारा लगातार तोड़ैत रहलासँ मालीकें शक भेलै आ एक दिन ओ चोर पकड़ा गेलै ।ओकरा दरबारमे आनल गेलै ।अकबर सब मंत्रीसँ पुछलनि जे एकर की उचित सजाय हेबाक चाही? किओ फाँसी तँ किओ आजीवन जहल देबाक बात कहलक ।किओ कोड़ा मारबाक सजा कहलक तँ किओ काला-पानीकें उचित बतेलक ।अन्तमे बिरबल बाजल,"महराज, एकरा छोड़ि देल जाए ।"
अकबर संग पूरा दरबार आश्चर्यचकित भऽ गेल आ एकर कारण पुछलक ।
बिरबल बाजल "हुजूर,एकरा कोनो कठोर सजाय नै दियौ । बस छोट-छीन जुर्वाना दऽ दियौ ।"
अकबर मुस्कैत बाजलनि "उचित जुर्वाना बताउ ।"
"महराज, मुख्य राज पथपर एक किलोमीटर धरि आमक गाछ रोपबाक जुर्वाना देल जाए ।किएक तँ एहिसँ बटोहीकें छाहरि भेटतनि, वातावरण संतुलित रहत आ एहन-एहन चोरकें आम लेल शाही बगैचा नै आबऽ पड़तै ।चोर जते चोरी करतै ओहिसँ बेसी ओकरा ओहि ठाम मीठका आम भेटि जेतै ।"
दरबार बिरबलक जयकारासँ गुंजि उठल ।

अमित मिश्र

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