109. सुटहा मारय जोरसँ धक्का
सुटकल पेट आ चोटकल गाल
लटकल घेंट आ घोघचल खाल
घुसकल टाँग आ धसल आँखि
मुदा मोनमे मजगूत पाँखि
करैक छै जग एक्कै फक्का
सुटहा मारय जोरसँ धक्का
सरजी कहलनि सोचि-विचारि कऽ
के ज्ञानी ? के मूर्ख ? उचारि कऽ
ज्ञानी पढ़त आखर उघारि कऽ
खेलत मूर्खहबा पोथी बजारि कऽ
पकड़ऽ चाहय ज्ञानीकेँ पक्का
सुटहा मारय जोरसँ धक्का
सहपाठी सब लुलुआबै छै
नेङगरा कहि कहि खिसियाबै छै
ओकरे सन मुँह पिचकाबै छै
आँखि देख सबकेँ ठिठियाबै छै
जतबे संगी सब बनय उचक्का
ततबे मारय जोरसँ धक्का
सोचि रहल गप सब कोनसँ
छी विकलांग, नै हारब मोनसँ
अछि संकल्प पढ़ब मोनसँ
बनेबै भविष्य गढ़ल सोनसँ
रसे-रसे बढ़ल ज्ञानक चक्का
सुटहा मारय जोरसँ धक्का
अमित मिश्र
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