बाल कविता-165
वानरकेँ बुधियारी
चोरि करै छल भालू भैया
सगरो नन्दन वनमे
पूस मास एक दिन पहुँचल
बानरकेँ भवनमे
सोना, चानी, हीरा, पन्ना
भरल रहै अलमारी
मुदा हेण्डिलसँ घंटी बान्हल
वानरकेँ बुधियारी
ताला खोलिते हेण्डिल छुबिते
बाजल घंटी गड़गड़
जागल वानर, दौड़ल आयल
भालू भागल भीतर
वाथरूममे बाल्टीमे जा
भालू मारने गबदी
देख चोरकेँ बानर सोचय
सबक सिखाबी जल्दी
स्वीच टिपैते मोटर चललै
झड़ना बहलै खूबे
पूसक सर्द पानिमे चोरबा
करैए हरहर गंगे
अकड़ि गेलै सब हाथ-पएर आ
छूटल सब बेमारी
कान पकरि कऽ चोरबा बाजल
नै करब चोरि-चकारी
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