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चलू कलमक कोदारि बना कऽ
तामि देबै परती उस्सर
शब्दक बीया रोपि कागतपर
उगा देबै भाव सुनर
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दिन, राति, आठो पहर
मस्ती रहत भरपूर
माएक हाथसँ रान्हल भानस
खाएब जँ हजूर
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जेठक रौद छै बनल कसैया
तैपर प्रियाक निमंत्रण
दूर देशमे बैसल पिया, कोना
करथिन नेहक तर्पण
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लोक-वेद सब बदलि गेल अछि
प्रकृति केर संग
गाछ-विरिछक परिधान आब नै
लोको नंग-धरंग
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कोट-कचहरीक चक्करमे
जहिया अहाँ फँसब
एके संगे टाका-इज्जत
गमा गमा कऽ मरब
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वियाहक मिठगर फेरमे
जुनि पड़ब मीत
डेग डेगपर धोखा भेंटत
लागत केवल तीत
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ऊँच खानदानक फेरमे
जुनि पड़ब यौ मीत
पेर देत कुसियार जकाँ
कानि कानि गेबै गीत
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