209. डर
बड खराब मौसम छलै ।पारा 45℃ पार क' चुकल छलै ।रघुनाथ एसी कारसँ बाहर निकल कन्सट्रक्सन साइटपर पहुँचल ।लंचक समय छलै तेँ ओत' एक्का-दुक्का मजदूर सब छलै आ छलहियो से लंचक भाद आराममे छल ।रघुनाथ आइ भेल सब काजकेँ देख रहल छल ।जखन गोदाममे गेल त' देखलक जे एकटा अधवयसु मजदूर असगरे ट्रकसँ सिमेंटक बोरा उतारि क' गोदाममे राखि रहल छल ।ओकरा देख रघुनाथके कने आश्चर्यो भेलै आ तेँ पूछि देलक-'अरे तूँ लंचपर नै गेलहीं ।
-नै साहेब,सोचली जे खाना त' घरोपर हेतै ताले कने काजे क' लै छिकियै ।' घामक बुन्न आंगुरसँ पोछैत ओ जबाब देलक ।
- एना कोना काज चलतै ।बिन खेने ऐ गर्मीमे तूँ नै सकबिहीं ।जो ने जखन कंपनी सबकेँ खाना दै छै त खाइमे कोन हर्ज छौ !
-छोड़ि दियौ मालिक ।एक लोटा पानि पीब लेलियै एखने ।ओनाहितो त' लंच टाइम समाप्ते भ' गेल छिकै ने ।
- नै नै, ई सब नै चलतौ ।टाइम खतम भ' गेलै तैसँ की? चल तोरा हम खाना मँगा दै छियौ ।
मजदूरक हाथ-पैर बुझू जे फूलि गेलै ।ओ टस-से-मस ने भेल ।जखन रघुनाथ बेसी तमसेलै त' ओ डेराइत बाजल- मालिक हम खाना टिफिनमे ल' लेने छीयै ।घर ल' क' चलि जेबै ।
- से किए रौ ।खेलहीं किए नै ।
- मालिक धिया-पुता लेल ल' जेबै ।ओकरा आरकेँ दालि-भातक दर्शनो नै ने होइ छै ।असल बात त' ई छिकै मालिक जे दालि-भात हमरो नीक लागै छै ।सोचै छिकियै जे एखन छौड़ा आरकेँ खुएबै तखने ने हमरा बुढ़ारीमे दालि-भात खुएतै ।बुढ़ारीमे गंजन नै होइ ताहि डरे भुखलो रहि धिया-पुताकेँ नीक-नीकुत खुबै छिकियै मालिक ।
रघुनाथक आँखि डबडबा गेल छलै ।
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