जल्दी जुटी गेलासँ फर्द नै होइ छै , जिनगी मे जौँ और किछ नै केलक ,,
रोटी आनि लेला सँ मर्द नै होइ छै , सौँसे देह उघारे छै कोनो बात नै ,
लुंगी पेन्हला सँ बेपर्द नै होइ छै , मौसम कतबो पलटी खाइ छैक ,,
मनुष्यक हृदय सर्द नै होइ छै , दुनियाँ लेल अहाँ कतबो छी क्रुर ,,
माँ के पुजलासँ बेदर्द नै होइ छै ,
माँग मे सेनुर नै माटि भरि दियौ ,,
माटीयो पड़लासँ गर्द नै होइ छै . . . । । अमित मिश्र
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