बाल कविता-5
चुट्टी आ हाथी
पाँति चुट्टीकेँ बड पैघ लागल
जंगल लागै छल दू दिश बाँटल
एकटा हाथी नाचैत ,झूमैत ,गाबैत
पाँति लऽग रूकि गेल दौड़ैत-दौड़ैत
हटि जो चुट्टी बाटसँ कहलक आबि
नै तऽ एखने देबौ तोरा दाबि
हम हटबै तँ पाँति टूटि जेतै
चुट्टी बाजल थम्हि जो एतै
चुट्टी कमजोर ,हाथी तगड़ा
दुनूमे फँसि गेलै बड़का झगड़ा
जखने हाथी दू डेग आगू बढ़लै
एटका चुट्टी झट दऽ नाँकमे घुसलै
दर्दसँ हाथी जोरसँ कानऽ लागल
देखि-देखि चुट्टी हँसऽ लागल
तेँ नै ककरो छोट बूझें तूँ
नै अपनापर अहं करें तू
(नेनपनमे पढ़ल एकटा कथापर आधारित)
अमित मिश्र
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें