बाल कविता-59
मुँहदुस्सा
मास्टर साहेब मास्टर साहेब
तोतरहबा हमर मुँहदूसै यै
हमरा दिश देख जी निकालए
मुँह घोघचा खिसियाबै यै
रौ तोतरहबा की करै छें ?
किए सबहक मुँह दूसै छें ?
सत्त बाज नै तँ कनैठी पड़तौ
किए एते बदमाशी करै छें ?
मास्टर साहेब सत्त बाजै छी
जानि-बूझि किछु नै केलौं
इमली खाइक आदत हमरा
आइयो एकटा खा लेलौं
दाँत कोथ भेल मुँह घोघचै यै
खट्टेसँ मुँहदुस्सा बनि गेलौं
अमित मिश्र
मुँहदुस्सा
मास्टर साहेब मास्टर साहेब
तोतरहबा हमर मुँहदूसै यै
हमरा दिश देख जी निकालए
मुँह घोघचा खिसियाबै यै
रौ तोतरहबा की करै छें ?
किए सबहक मुँह दूसै छें ?
सत्त बाज नै तँ कनैठी पड़तौ
किए एते बदमाशी करै छें ?
मास्टर साहेब सत्त बाजै छी
जानि-बूझि किछु नै केलौं
इमली खाइक आदत हमरा
आइयो एकटा खा लेलौं
दाँत कोथ भेल मुँह घोघचै यै
खट्टेसँ मुँहदुस्सा बनि गेलौं
अमित मिश्र
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें