178. उपजा
- की हौ रामखेलावन, एमकी की सब उपजाबैक विचार केने छहो ? - की कहौं सरकार, एमकी कुच्छो उपजाबैक जरूरते नै हइ ! - से किए हौ ? - सरकार, हमरे सभक उपजाएल अन्नसँ ने लोकक देहमे गर्मी बढ़ै हइ ?हष्ट-पुष्ट देहमे तागत बढ़ै हइ ? - हँ हौ, दाने-पानीसँ तँ लोककेँ पेट भरै छै । - सरकार, एमकी हमरा सबसँ ई काज भगवान छीन लेलखिन हन ।एमकी गर्मी उपजाबैक ठेकेदारी हुनके भेटलै हन ।देखै नै छीयै लू चलै हइ ।एहनमे हम किए कुच्छो उपजेबै !उपजाबैये के देतै !
- की हौ रामखेलावन, एमकी की सब उपजाबैक विचार केने छहो ? - की कहौं सरकार, एमकी कुच्छो उपजाबैक जरूरते नै हइ ! - से किए हौ ? - सरकार, हमरे सभक उपजाएल अन्नसँ ने लोकक देहमे गर्मी बढ़ै हइ ?हष्ट-पुष्ट देहमे तागत बढ़ै हइ ? - हँ हौ, दाने-पानीसँ तँ लोककेँ पेट भरै छै । - सरकार, एमकी हमरा सबसँ ई काज भगवान छीन लेलखिन हन ।एमकी गर्मी उपजाबैक ठेकेदारी हुनके भेटलै हन ।देखै नै छीयै लू चलै हइ ।एहनमे हम किए कुच्छो उपजेबै !उपजाबैये के देतै !
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें