बाल कविता- 128
चान केर अंगा
चान कहैत अछि, मम्मी, हमरा सिया दे एकटा अंगा
भऽ रहलौं जुआन आब हम, नङटे लागी बेढंगा
संग किछु नै राखि पाबै छी, कोपी, कलम, रजिस्टर
तेँ अंगामे दस-बीस जेबी, सब होइ नम्हर-चौड़गर
माँ, गर्मी केर चिन्ता नै अछि, अपने छी हम शीतल
मुदा जानै छी हमहीं जननी, जाड़ कोना कऽ बीतल
ठिठुरि ठिठुरि कऽ काहि कटै छी, कहुना गुजर करै छी
सुरजो दादा भागि जाइ छथि, हकन नोर कनै छी
हमर हालसँ दुखित हेबें तूँ, करैत हेबें बड चिन्ता
माएक ममता खतम भऽ जेतै, एतै नै एहन अदिन्ता
सब चिन्ताकेँ नाश करें तूँ, खर्च करें किछु कैँचा
सिया दे हमरा अंगा जननी, लऽ ककरोसँ पैँचा
माँ कहलनि, सुन रौ बौआ, अछि कैँचा केर नै खगता
खन छोट खन पैघ बनै छें, नाप कोना लऽ सकता !
चन्ना बाजल, बेटा तोहर, पढ़ल-लिखल छौ वुधिगर
तीस दिनक लेल तीस टा अंगा, सिया छोट आ नम्हर
सिया गेलै चन्नाकेँ अंगा, पहिर-पहिर होइ हर्षित
खूब शानसँ घुमैए नभमे, ठिठुरनसँ भऽ वंचित
अमित मिश्र
चान केर अंगा
चान कहैत अछि, मम्मी, हमरा सिया दे एकटा अंगा
भऽ रहलौं जुआन आब हम, नङटे लागी बेढंगा
संग किछु नै राखि पाबै छी, कोपी, कलम, रजिस्टर
तेँ अंगामे दस-बीस जेबी, सब होइ नम्हर-चौड़गर
माँ, गर्मी केर चिन्ता नै अछि, अपने छी हम शीतल
मुदा जानै छी हमहीं जननी, जाड़ कोना कऽ बीतल
ठिठुरि ठिठुरि कऽ काहि कटै छी, कहुना गुजर करै छी
सुरजो दादा भागि जाइ छथि, हकन नोर कनै छी
हमर हालसँ दुखित हेबें तूँ, करैत हेबें बड चिन्ता
माएक ममता खतम भऽ जेतै, एतै नै एहन अदिन्ता
सब चिन्ताकेँ नाश करें तूँ, खर्च करें किछु कैँचा
सिया दे हमरा अंगा जननी, लऽ ककरोसँ पैँचा
माँ कहलनि, सुन रौ बौआ, अछि कैँचा केर नै खगता
खन छोट खन पैघ बनै छें, नाप कोना लऽ सकता !
चन्ना बाजल, बेटा तोहर, पढ़ल-लिखल छौ वुधिगर
तीस दिनक लेल तीस टा अंगा, सिया छोट आ नम्हर
सिया गेलै चन्नाकेँ अंगा, पहिर-पहिर होइ हर्षित
खूब शानसँ घुमैए नभमे, ठिठुरनसँ भऽ वंचित
अमित मिश्र
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