बाल कविता- 133
अधजल गगरी छिलकैत जाए
बाबा हाथक कोदारि हल्लुक लगै छै
बिनु पढ़ल-लिखल वनहुल्लुक लगै छै
अधजल गगरी छिलकैत जाए
कम्मे ज्ञान तँ भेलै बलए
नाच नै आबय आँगने टेढ़
जिम्हर-तिम्हर हेलय बेढ़
चोर-चोर मौसेरा भाइ
फँसबऽ तँ नै कोनो उपाइ
घरक मुर्गी कोनो नै मोल
करू लागय मिठको बोल
भेटय माँड़ नै, पीबय ताड़ी
झूट्ठे सगरो ज्ञान बघारी
अधजल गगरी छिलकैत जाए
बाबा हाथक कोदारि हल्लुक लगै छै
बिनु पढ़ल-लिखल वनहुल्लुक लगै छै
अधजल गगरी छिलकैत जाए
कम्मे ज्ञान तँ भेलै बलए
नाच नै आबय आँगने टेढ़
जिम्हर-तिम्हर हेलय बेढ़
चोर-चोर मौसेरा भाइ
फँसबऽ तँ नै कोनो उपाइ
घरक मुर्गी कोनो नै मोल
करू लागय मिठको बोल
भेटय माँड़ नै, पीबय ताड़ी
झूट्ठे सगरो ज्ञान बघारी
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