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गुरुवार, 28 अगस्त 2014

अधजल गगरी छिलकैत जाए

बाल कविता- 133
अधजल गगरी छिलकैत जाए

बाबा हाथक कोदारि हल्लुक लगै छै
बिनु पढ़ल-लिखल वनहुल्लुक लगै छै

अधजल गगरी छिलकैत जाए
कम्मे ज्ञान तँ भेलै बलए

नाच नै आबय आँगने टेढ़
जिम्हर-तिम्हर हेलय बेढ़

चोर-चोर मौसेरा भाइ
फँसबऽ तँ नै कोनो उपाइ

घरक मुर्गी कोनो नै मोल
करू लागय मिठको बोल

भेटय माँड़ नै, पीबय ताड़ी
झूट्ठे सगरो ज्ञान बघारी

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