नाटक "अधिकार"क एक टा नारी-विकासक गीत
पढ़ल लिखल बौआ बुदरूक, आब छै अपन समाजमे
लुरिगर बुधिगर सभक धिया, छैक निपुण सब काजमे
एकटा बेटी संतोष यादव, हिमालयपर चढ़ि जाइ छै
दोसर बेटी किरण वेदी, पुरुखोसँ अगुआइ छै
कोनो जादू भरल लताकेँ, मिठगर सन आवाजमे
लुरिगर बुधिगर . . . . .
हमर महिला सैनिक एसगर, सीमापर लड़ि जाइ छै
देख धियाकेँ ऊँच गगनमे, सभक दिल जरि जाइ छै
बाबू अहाँक सुलेखा चमकत, कुल-खानदानक ताजमे
लुरिगर बुधिगर . . . . . .
अमित मिश्र
पढ़ल लिखल बौआ बुदरूक, आब छै अपन समाजमे
लुरिगर बुधिगर सभक धिया, छैक निपुण सब काजमे
एकटा बेटी संतोष यादव, हिमालयपर चढ़ि जाइ छै
दोसर बेटी किरण वेदी, पुरुखोसँ अगुआइ छै
कोनो जादू भरल लताकेँ, मिठगर सन आवाजमे
लुरिगर बुधिगर . . . . .
हमर महिला सैनिक एसगर, सीमापर लड़ि जाइ छै
देख धियाकेँ ऊँच गगनमे, सभक दिल जरि जाइ छै
बाबू अहाँक सुलेखा चमकत, कुल-खानदानक ताजमे
लुरिगर बुधिगर . . . . . .
अमित मिश्र
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