गजल-1.58
काटल तँ तोहर आब पानि नै माँगत
तूँ भाग्य यदि हेबें बिमुख तँ के जीयत
लाठी पटकि मीता करत जँ लतमर्दन
नेनपनमे संगीक मोह नै छूटत
सकपंज छी चिमनी बनल जँ मुँह मनुखक
निज संग आनो के तँ असमय मारत
नै मरल छै बेमार मात्र शासन छै
आन्हर बनल पुतला तँ कोर्टमे टूटत
अलबत्त लागै छै मनुख बदलि गेलै
रौदा सहै जे आब कारमे पाकत
मुस्तफइलुन-मुस्तफइलुन-मफाईलुन
2212-2212-1222
अमित मिश्र
काटल तँ तोहर आब पानि नै माँगत
तूँ भाग्य यदि हेबें बिमुख तँ के जीयत
लाठी पटकि मीता करत जँ लतमर्दन
नेनपनमे संगीक मोह नै छूटत
सकपंज छी चिमनी बनल जँ मुँह मनुखक
निज संग आनो के तँ असमय मारत
नै मरल छै बेमार मात्र शासन छै
आन्हर बनल पुतला तँ कोर्टमे टूटत
अलबत्त लागै छै मनुख बदलि गेलै
रौदा सहै जे आब कारमे पाकत
मुस्तफइलुन-मुस्तफइलुन-मफाईलुन
2212-2212-1222
अमित मिश्र
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