बाल कविता-135
सुन रौ गुल्टेनमाँ
सुन रौ गुल्टेनमाँ
पोथीकेँ छोड़ि कऽ
पिनसिनकेँ तोड़ि कऽ
पकड़ महिसक नाथ
झट दऽ घुमा आ बाध
सुन रौ गुल्टेनमाँ
ओलकेँ कोरि कऽ
नेबोकेँ तोड़ि कऽ
बना कऽ दे नीक सन्ना
चलतौ नै दर्दक बहन्ना
सुन रौ गुल्टेनमाँ
सर्फकेँ घोरि कऽ
कपड़ाकेँ निचोड़ि कऽ
साफ कऽ ले ऐंठ बर्तन
तखने देबौ तोरा तीमन
सुन रौ गुल्टेनमाँ
पोथीकेँ भम्होरि कऽ
इस्कूलकेँ ओगरि कऽ
नै चलतौ तोहर पेट
हेतौ मरलाहा बापसँ भेट
सुन रौ गुल्टेनमाँ
सुन रौ गुल्टेनमाँ
पोथीकेँ छोड़ि कऽ
पिनसिनकेँ तोड़ि कऽ
पकड़ महिसक नाथ
झट दऽ घुमा आ बाध
सुन रौ गुल्टेनमाँ
ओलकेँ कोरि कऽ
नेबोकेँ तोड़ि कऽ
बना कऽ दे नीक सन्ना
चलतौ नै दर्दक बहन्ना
सुन रौ गुल्टेनमाँ
सर्फकेँ घोरि कऽ
कपड़ाकेँ निचोड़ि कऽ
साफ कऽ ले ऐंठ बर्तन
तखने देबौ तोरा तीमन
सुन रौ गुल्टेनमाँ
पोथीकेँ भम्होरि कऽ
इस्कूलकेँ ओगरि कऽ
नै चलतौ तोहर पेट
हेतौ मरलाहा बापसँ भेट
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