बाल कविता- 233
मोन करैए
मोन करैए तितली संगे, हमहूँ उड़ी अकासमे
परी लोकसँ कीन आनी, जादू पाइ पचासमे
छुमंतर छुमंतर पढ़ि क', बदली घोड़ा घासमे
साँढ़क सिंह उड़ाबी हम, पहुँचाबी गदहा पासमे
सुग्गा बनि जाए कागज, कागज फूल पलाशमे
दसटकही त' सिक्का बनय, जोकर नाचय तासमे
संगी-साथी थपड़ी पाड़य, उबडुब करी विश्वासमे
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