201. जागृति
-की हौ बटेसर, ई भोरे भोरे कत' मुँह रंगबा लेलहो हौ !
- और कत' रंगबेबै, काल्हुके राँगल अछि ।एबरी दू दिना होली रहै ने ।
-ओहो, तखन त' काल्हि खूब कचरमकूट भेल हेतह ?
- नै मालिक ।
-से किए हौ ?
-हमरा आरकेँ विधाता तेना क' अधमरू क' दैत छथिन जे की कचरमकूट करबै ।ननकिरबाकेँ काल्हिये सब पाइ पठा देलियै ।दरभंगामे साइन्स पढ़ै छै ने छौड़ा ।
- एँ हौ, तोरा खाइपर आफत छह तखन कथी लेल पढ़बै छहक ।दिल्ली-पंजाब भेज दहक, अपन कमेतै खेतै ग' ।
- नै मालिक, पढ़तै तखने ने बाबू साहेब बनतै ।मालिक, हमर बाप नै बुझलकै लेकिन आब हम आर बुझै छियै पढ़ाइक महोत ।आब किओ कते दिन दोसरक ढेरीपर घाम चुएने फिरतै ।
अमित मिश्र
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