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यमराज
पूरा परोपट्टामे आनंदक लहर पसरि गेल छैलै ।सभक मोनमे कल्पनाक नव पाँखि उगि गेल छलै ।सब अपन-अपन फायदाक हिसाब लगा रहल छल ।सब ठाम एक्कै चर्चा छलै ।आखिर गाम द' क' एन.एच पास भेल छलै ।साठि हजार कट्ठा बला खेत सड़क किनार पड़ने छअ लाखक भ' गेल छलै ।लोक मुआवजा ल' क' सड़कमे अपन जमीन द' रहल छल ।गामक अंतमे कलपू डोमक घर छलै ।जमीनक आमपर मात्र घड़ारिये टा छलै ओकरा ।ओ जमीन दैसँ मना क' देलक ।गाममे सभक कान ठाढ़ भ' गेलै ।सबके सपना टूटैत बुझाए लागलै ।जखन कलपू सुगर चरबै लेल गेल तखन ठीकेदार संग गौआ सब आबि ओकर खोपड़ी उजाड़ि देलकै ।कलपू इएहले-वएहले दौड़ल ।लोकक भीड़ देख किछु बाजल ने गेलै।ओ एतबे सोचैत रहल जे आब रहत कत' ? ठिकेदार ओकरा हाथमे बीस हजार द' चलि देलक ।साँचो तखन पूरा भीड़ यमराजे जकाँ लागल छलै ओकरा ।
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