5.57 ध' ले बौआ कानमे
अपन देशक नाम उँच होइ
एतबे टा बस ध्यानमे
अपन तिरंगा फहरैत रहय
ई निलहा असमान मे
सभसँ आगू नाम एकर होइ
सभटा अनुसंधानमे
बृद्धि सदिखन होइते रहय
लुरि बुधि आ ज्ञानमे
प्रेम भिव केर लत्ती पसरय
आंगन संग दलानमे
झूठ-फरेब मद मोह ने रहय
देशक सभ संतानमे
भरि दुनियाँक शीष झुकल हो
भारतक रण मैदानमे
एक पाँतिमे ठाढ़ रहय सभ
एहि देशक सम्मानमे
बात एकटा बौआ बुच्ची
ध' ले अपन कानमे
विश्व मुकुट भारत बनि रहय
जुटि जो ई अभियानमे
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें