5.41 राति घनघोर हो
माहुर सन भोर हो
नहिं जँ इजोर हो, त संबल ध' रह ने
तन केर तागतसँ किछ होइ नै बाउ रे
असलीमे चाही बस मजगुत हिआउ रे
अनकर सोराज हो
विपरीत समाज हो
भारी सन काज हो, त' निर्बल भ' रह ने
पाथरकेँ चीर मनुख बनबै छै बाट रे
सभटा समस्या केर मनुखे लग काट रे
समस्या संगोर हो
नै ओर - छोड़ हो
मन जँ विभोर हो, त' अथबल भ' रह ने
तागत संग बुधि केर जँ भ' जाइए मेल रे
क्षण पलटि जाइ छै बिगड़ल सभ खेल रे
लेभरल किताब हो
नै जँ जबाब हो
शक्तिक अभाव हो, त' सुटकल तूँ रह ने
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